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कविता

तुम खुश तो हो न ?

विमल चंद्र पांडेय


सुबह की उमस भरी रात में
नींद झटके से खुली है
कमरे में सिर्फ हम दो हैं
मैं और पंखा
हममें फर्क सिर्फ इतना है
वह बोलता भी है और
सुबह-सुबह सिगरेट नहीं पीता
सुबह के इस आखिरी पहर में
नींद अचानक खुल गई है
सपने में उसे देख कर
बुरा सपना !
उसे फोन भी नहीं कर सकता अब
वक्त बदल चुका है बहुत
यह मैं नहीं
पंखा सोच रहा है
वह मुझसे ज्यादा सक्रिय है
कई मामलों में
उसे उतार कर
झाड पोंछ कर
अपनी जगह भेज सकता हूँ
उसके पास
यह पूछने
'शादी के बाद खुश तो हो न गुड़िया ?'

 


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